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आप इस संसार में क्यों महत्वपूर्ण हैं?

आप इस संसार में क्यों महत्वपूर्ण हैं? दोस्तों, क्या आपने सोचा है कि आपका जीवन कितना महत्वपूर्ण है? आइए, आज हम जीवन को गहराई से देखने और समझने का प्रयास करते हैं। हम सभी जीवन में भौतिक चीजों को पाने की होड़ में लगे रहते हैं। जो पा लेता है, वह और कुछ बड़ा पाने की उम्मीद में दौड़ता रहता है, और जो नहीं पा पाता, वह निराश होकर खुद को हारा हुआ मान लेता है और जीवन से समझौता कर लेता है। लेकिन हमें जो बहुमूल्य जीवन मिला है, वह केवल इन चीजों के लिए नहीं है। हमें आखिर में मरना ही है। हम इस जीवन के कड़े सत्य को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम जो इस जीवन में बिना रुके, हर चीज को अपना मानकर आगे बढ़ रहे हैं, इसका भी अंत होगा। अंततः, हमें उस बिंदु पर रुकना होगा जहाँ ये सभी भौतिक चीजें किसी मूल्य की नहीं रहेंगी। चलिए, जीवन के मूल्य को एक अलग दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करते हैं और जीवन जीने के नए तरीकों को सीखते हैं।

तुम न होते तो क्या होता?

जीवन को अर्थपूर्ण बनाने के लिए, हमें इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखना होगा। हमें समझना होगा कि हम इस संसार में क्यों आए हैं। अगर हम न भी होते, तो शायद यह संसार रुकता नहीं। यह आगे बढ़ता ही रहता। लेकिन यकीन मानिए, अगर आप न होते, तो इस संसार में बहुत कुछ नहीं होता। आप हैं, इसलिए यह ब्लॉग भी अस्तित्व में है। आप हैं, इसलिए आपके आस-पास के लोग हैं और आपके द्वारा किए गए कार्य संसार में बहुत कुछ उत्पन्न करते हैं जो दूसरों के जीवन को प्रभावित करता है।

यदि आप न होते, तो कई क्रियाएँ आपके घर या समाज में नहीं होतीं। आप किसी न किसी तरीके से अपने विचार साझा कर रहे हैं और दूसरों के कार्यों को प्रभावित भी कर रहे हैं। इसलिए, यकीन मानिए कि आपका इस संसार में होना बहुत महत्वपूर्ण है, और इसे अर्थपूर्ण बनाना आपका कर्तव्य है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

सृजन करना हमारी प्रकृति है

इस संसार में जो भी चीजें हैं, वे किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ उत्पन्न करती हैं। हम, आप, जानवर, या फिर प्रकृति, इस संसार में जो भी जीवित और निर्जीव वस्तुएं हैं, सभी कुछ न कुछ उत्पन्न करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप फलों के छिलके को फेंक दें, तो वह मिट्टी में बदल जाता है, और फल के बीज को फेंक दें, तो वह पेड़ में बदल जाता है। उसी प्रकार, हम भी जीवन में कुछ उत्पन्न करने के लिए पैदा हुए हैं। हमारी दैनिक दिनचर्या में जो भी हम करते हैं, उससे भी कुछ न कुछ उत्पन्न होता है।

जैसे, जब आप किसी से गुस्से में बात करते हैं, तो सामने वाले की मनोदशा में परिवर्तन आता है, और वह उदास हो सकता है, जिससे वह दूसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार कर सकता है या खुद को मानसिक रूप से नुकसान पहुँचा सकता है। इसी तरह, जब आप किसी को खुशी के मूड में तारीफ करते हैं, तो वह खुश हो जाता है और उस खुशी को आगे जारी रखता है। दोस्तों, यह केवल एक छोटा सा उदाहरण है। जीवन के हर पहलू को आप गहराई से सोच सकते हैं। हम हमेशा कुछ न कुछ उत्पन्न करते आए हैं और करते रहेंगे।

निर्णय करें कि आप क्या सृजित करते हैं

जब हम जान चुके हैं कि हम सब कुछ न कुछ उत्पन्न करते हैं, तो क्या हम इसे निर्धारित करके कुछ अच्छा उत्पन्न नहीं कर सकते? अर्थात, अगर हम बिना सोचे कुछ करते हैं, बिना लक्ष्य निर्धारित किए पढ़ाई करते हैं, या किसी भी पेशे में काम करते हैं, तो हम कुछ न कुछ उत्पन्न कर ही रहे हैं, लेकिन यह न तो हमारे लिए योग्य होगा और न ही समाज के लिए। तो दोस्तों, अगर हम लक्ष्य निर्धारित कर लें कि हमें जीवन में क्या करना है या क्या बनना है, तो हम खुद के लिए और समाज के लिए कुछ मूल्यवान उत्पन्न कर सकते हैं।

आत्म-जागरूकता का महत्व

एक विद्यार्थी बिना लक्ष्य के पढ़ाई करता है, पढ़ाई समाप्त होने पर मुश्किल से एक नौकरी मिलती है, और फिर उसे उस नौकरी को चुनना पड़ता है। इसके बाद, शादी करके जीवन के नए चरण में फिर से बिना लक्ष्य के आगे बढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसकी आदत बन गई है बिना लक्ष्य के आगे बढ़ने की। वैसे भी, वह कुछ न कुछ उत्पन्न कर रहा है, लेकिन यह योग्य नहीं है, न उसके लिए और न ही इस संसार के लिए।

वहीं, यदि एक विद्यार्थी लक्ष्य लेकर पढ़ाई करता है, क्या बनना है यह तय करता है, तो वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है या फिर लक्ष्य पूरा नहीं भी करता है, तो वह लक्ष्य से समान किसी अन्य मंजिल तक पहुँच जाता है। फिर वह नए लक्ष्य को निर्धारित करके जीवन के अगले चरण में बढ़ता है और खुद के लिए और समाज के लिए कुछ मूल्यवान उत्पन्न करता है।

इन दोनों उदाहरणों में यही अंतर है कि पहला विद्यार्थी बिना लक्ष्य के आगे बढ़ रहा था, और जो भी वह जीवन में कदम उठाता, उसके लिए वह आत्म-जागरूक नहीं था। वहीं दूसरा विद्यार्थी हर चीज को लक्ष्य बनाकर करता है और जो भी वह करता है, उसे अच्छे से समझकर अर्थात् आत्म-जागरूक होकर करता है।

तो हमें अपने जीवन में जो भी करते हैं, जैसे कि किस माहौल में रहेंगे, कैसे दोस्त रखेंगे, कहाँ और किन चीजों पर समय बिताएंगे, इन छोटी-छोटी बातों को भी आत्म-जागरूक होकर करना चाहिए ताकि हम कुछ मूल्यवान उत्पन्न कर सकें। हमें यह जानना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं, और किस उद्देश्य से कर रहे हैं। बिना आत्म-जागरूक हुए हम उत्पन्न तो करते हैं, लेकिन वह बेकार ही होता है।

दूसरा उदाहरण लेते हैं, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो सिर्फ खुद के लिए जीते हैं, खुद की खुशी, संतोष और आराम से उन्हें मतलब होता है। ऐसे स्वार्थी लोग जीवन में बड़े मुकाम पर भी पहुंच सकते हैं, लेकिन वे कभी खुश नहीं होते। जीवन को हमेशा वे एक प्रतियोगिता की तरह देखते हैं, और बड़े मुकाम पर पहुंचने के लिए हर चीज को अपना मानकर दौड़ते रहते हैं। जीवन के अंतिम समय में उन्हें यह भी नहीं पता चलता कि वे कब पहुंचे। ऐसे जीवन से हम अंततः कुछ मूल्यवान नहीं उत्पन्न करते, न अपने लिए और न ही समाज के लिए।

वहीं, कोई व्यक्ति अगर अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी अवसरों के बावजूद, खुद के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण बनाने और समाज के हित के लिए सेवा भाव से संगठन चलाता है, तो वह एक सार्थक योगदान देता है। ऐसे बहुत से उदाहरण आपके समाज में देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

तो दोस्तों, यह आपके हाथ में है कि आप क्या उत्पन्न करना चाहते हैं। यदि आप आत्म-जागरूक होकर कदम उठाते हैं और सोच-समझकर कुछ उत्पन्न करने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो आप अपने जीवन का आनंद लेते हुए इसे एक अर्थपूर्ण दिशा दे सकते हैं। आप भी जीवन को इस तरह से सोचने और देखने का प्रयास करें और कुछ बड़ा और मूल्यवान उत्पन्न करें, जिससे आप और समाज को भी लाभ हो। और अपने जीवन को एक अर्थपूर्ण बनाएं।

अंतिम तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।

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